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कम जोत वाले किसानों के लिए कम दाम और अधिक शक्ति में आने वाले ट्रैक्टर

कम जोत वाले किसानों के लिए कम दाम और अधिक शक्ति में आने वाले ट्रैक्टर

सोनालिका GT20 ट्रैक्टर तीन सिलेंडर के साथ आता है और इसके अंदर 20 हॉर्स पॉवर की शक्ति मौजूद रहती है। इस ट्रैक्टर में समकुल 8 गियर रहते हैं और यह खेती-किसानी से जुड़े लगभग समस्त कार्य कर लेता है। 

एक समय था, जब किसान खेती करने के लिए बैल और हल का उपयोग किया करते थे। लेकिन, आज के समय के किसान ट्रैक्टर जैसे अत्याधुनिक कृषि यंत्रों से कृषि कार्य करते हैं। 

दरअसल, ट्रैक्टर की कीमत अधिक होने की वजह से छोटी जोत करने वाले कृषकों को ट्रैक्टर खरीदने से पहले कई बार विचार करना पड़ता है। ट्रैक्टर आज के समय में कृषि क्षेत्र का सबसे अहम हिस्सा बन चुका है। 

आधुनिकता और कृषि से जुड़े नवीन अविष्कारों के चलते किसान काफी अच्छा उत्पादन कम समय और श्रम खर्च किए बिना उठा रहे हैं। अगर हम बात करें कि छोटी जोत के किसानों को अधिक महंगा ट्रैक्टर खरीदने की आवश्यकता ही नहीं है, तो इस पर आप क्या कहेंगे। 

आज हम आपको कुछ ऐसे ट्रैक्टरों के विषय में बताएंगे जो काफी छोटे हैं और इनकी कीमत भी काफी कम है। छोटे किसान इनको बड़ी आसानी से खरीदकर अपना कृषि कार्य सुगमता से कर सकते हैं।

कैप्टन 283 4WD 8G ट्रैक्टर

बतादें कि इसको मिनी ट्रैक्टर कहा जाता है। यह विशेष रूप से छोटी जोत के किसानों के लिए ही निर्मित किया गया है। 3 सिलेंडर वाला यह ट्रैक्टर दिखने में बेसक छोटा है, परंतु शक्तिशाली है। 

इसमें 27 हॉर्स पॉवर की शक्ति उपस्थित है। यह मिनी ट्रैक्टर हर वह कार्य कर सकता है, जिस कार्य को एक बड़ा ट्रैक्टर कर सकता है। इसमें समकुल 12 गियर होते हैं, जिसमें से 9 आगे की तरफ लगते हैं और 3 पीछे की तरफ लगाए जाते हैं।

750 किलो के इस ट्रैक्टर का बाजार में भाव तकरीबन 4.25 से 4.50 लाख रुपये है। इसे आप कर्ज पर भी खरीद सकते हैं।

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सोनालिका GT20 ट्रैक्टर

सोनालिका GT20 ट्रैक्टर भी तीन सिलेंडर के साथ आता है और इसमें 20 हॉर्स पॉवर की ताकत होती है। इस ट्रैक्टर में कुल 8 गियर होते हैं और यह खेती से जुड़े लगभग वो समस्त कार्य कर लेता है, जो कि एक बड़ा ट्रैक्टर कर सकता है। 

इस ट्रैक्टर में सिंगल क्लिच के साथ ही मैकेनिकल ब्रेक भी दिए गए हैं। इसका वजन 650 किलोग्राम है और यह बाजार में 3 से 3.5 लाख रुपये के मध्य आपको सुगमता से प्राप्त हो जाएगा।

जॉन डियर 3028 EN ट्रैक्टर

जॉन डियर 3028 EN एक मिनी ट्रैक्टर है। लेकिन इसकी डिजाइन इतनी बेहतरीन ढंग से की गई है, कि बड़े-बड़े ट्रैक्टर भी इसके आगे फेल हो जाएं। इस ट्रैक्टर में तीन सिलेंडर होते हैं और इसमें 28 हॉर्स पॉवर की शक्ति उपस्थित होती है।

सबसे विशेष बात यह है, कि इसमें सिंगल क्लिच के साथ डिस्क ब्रेक भी हैं। इतना ही नहीं इसमें कॉलर रिवर्स ट्रांसमिशन भी उपलब्ध है। इस ट्रैक्टर में 8 गियर आगे और 8 गियर पीछे के लिए होते हैं। 

बाजार में यह ट्रैक्टर आपको 5.65 से 6.11 लाख के मध्य आसानी से मिल जाऐंगे। यही वजह है, कि यदि आप छोटी जोत के किसान हैं, तो आपको इन ट्रैक्टरों में से किसी एक का चयन करना चाहिए।

बाजार भेजने से पूर्व केले को कैसे तैयार करें की मिले अधिकतम लाभ?

बाजार भेजने से पूर्व केले को कैसे तैयार करें की मिले अधिकतम लाभ?

आभासी तने से केले की कटाई के उपरांत , केले को बंच से अलग अलग हथ्थे में अलग करते है। इसके बाद इन हथ्थों को फिटकरी के पानी की टंकी में डालें @ 1 ग्राम फिटकरी प्रति 2.5 लीटर पानी की दर से मिलाते है। केले के इन हथ्थों को लगभग 3 मिनट के लिए डुबाने के बाद निकल लें। फिटकरी के घोल की वजह से केले के छिलकों के ऊपर के प्राकृतिक मोम हट जाती है एवं साथ साथ फल के ऊपर लगे कीड़ों के कचरे भी साफ हो जाते हैं। यह एक प्राकृतिक कीटाणुनाशक के रूप में कार्य करता है। इसके बाद दूसरे टैंक में एंटी फंगल लिक्विड हुवा सान (Huwa San), जिसके अंदर लिक्विड सिल्वर कंपोनेंट्स के साथ हाइड्रोजन पेरोक्साइड होता है जो एंटीफंगल के रूप में काम करता है,जो फंगस को बढ़ने नहीं देता है।

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हुवा-सैन क्या है?

हाइड्रोजन पेरोक्साइड और सिल्वर स्टेबलाइजर के संयोजन की प्रक्रिया दुनिया भर में अद्वितीय है और मूल हुवा-सैन तकनीक पर आधारित है, जिसे पिछले 15 वर्षों में रोम टेक्नोलॉजी में और विकसित किया गया था।

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यह तकनीक अद्वितीय है क्योंकि पेरोक्साइड को स्थिर करने के लिए एसिड जैसे किसी अन्य स्थिरीकरण एजेंट की आवश्यकता नहीं होती है। यह सब Huwa-San Technology के उत्पादों को गैर-अवशिष्ट और अत्यंत शक्तिशाली कीटाणुनाशक बनाता है।हुवा-सैन एक वन स्टॉप बायोसाइडल उत्पाद है जो बैक्टीरिया, कवक, खमीर, बीजाणुओं, वायरस और यहां तक ​​कि माइकोबैक्टीरिया के खिलाफ प्रभावी है और इसलिए इस उत्पादों को वाष्पीकरण के माध्यम से पानी, सतहों, औजारों और यहां तक ​​कि बड़े खाली क्षेत्रों को कीटाणुरहित करने के लिए कई क्षेत्रों में उपयोग किया जा सकता है। पिछले 15 वर्षों में, हुवा-सैन उत्पादों का प्रयोगशाला पैमाने पर और दुनिया भर में कई फील्ड परीक्षणों पर बड़े पैमाने पर परीक्षण किया गया था। तकनीकी ज्ञान के साथ हुवा-सैन के व्यापक अनुप्रयोग स्पेक्ट्रम के भीतर जानकारी की प्रचुरता विश्वव्यापी सफलता की कुंजी रही है। Huwa-San को लैब और फील्ड टेस्ट सेटिंग्स में पूरी तरह से शोध और विकसित किया गया है ,यह पूर्णतया सुरक्षित है और ये नतीजतन, हुवा-सैन उत्पाद कीटाणुशोधन के लिए नवीनतम मानकों को पूरा करते हैं ।

मूली की फसल को प्रभावित करने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम

मूली की फसल को प्रभावित करने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम

मूली का सेवन भारत के सभी हिस्सों में किया जाता है। आज हम आपको इसमें होने वाले रोगों के बचाव के बारे में बताते हैं। भारत के हर हिस्से में मूली की खेती की जाती है। इसकी खेती के लिए रेतीली भुरभुरी मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। मूली में विटामिन, कैल्शियम, कॉपर, मैग्नीश्यिम और कैल्सियम भरपूर मात्रा में मौजूद होती है। इसकी खेती के लिए मिट्टी की पीएच वैल्यू 6 से 8 के मध्य होनी चाहिए। आज हम आपको इसमें लगने वाले रोग एवं उनसे बचाव के विषय में आपको जानकारी देने जा रहे हैं।

बालदार सुंडी

यह रोग मूली में शुरुआत की अवस्था में ही लग जाता है। बालदार सुंडी रोग पौधों को पूरी तरह से खा जाता है। यह कीट पत्तियों सहित पूरी फसल का नुकसान कर देते हैं, जिससे पौधे अपना भोजन सूर्य के प्रकाश से ग्रहण नहीं कर पाते हैं। इसके बचाव के लिए क्विनालफॉस उर्वरक का उपयोग किया जाता है। यह भी पढ़ें:
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ह्वाइट रस्ट

इस प्रकार के कीट आकार में बेहद छोटे होते हैं। यह मूली के पत्तियों पर लगते हैं। यह कीट पत्तियों का रस चूसकर उसको पीले रंग का कर देते हैं। इस किस्म का रोग इस बदलते जलवायु परिवर्तन की वजह से ज्यादा देखने को मिल रहा है। इससे संरक्षण के लिए आप मैलाथियान उर्वरक की उचित मात्रा का छिड़काव मूली के पौधों पर कर सकते हैं।

झुलसा रोग

यह मौसम के मुताबिक लगने वाला रोग है। मूली में यह रोग जनवरी और मार्च महीने के मध्य लगता है। झुलसा रोग लगने से पौधों की पत्तियों पर काले रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। साथ ही, मूली का रंग भी काला पड़ जाता है। इससे बचाव के लिए मैन्कोजेब तथा कैप्टन दवा का उचित मात्रा मे जल के घोल के साथ छिड़काव करने से इस रोग को रोका जा सकता है। यह भी पढ़ें: किसान भाई सेहत के लिए फायदेमंद काली मूली की खेती से अच्छी आमदनी कर सकते हैं

काली भुंडी रोग

यह भी पत्तियों में लगने वाला एक कवक रोग है। इसमें पौधों की पत्तियों में पानी कमी होने की वजह से यह सूख सी जाती हैं। यदि यह रोग अन्य मूली में लगता है, तो यह पूरी फसल में फैल जाता है। किसान को बहुत बड़ा नुकसान हो जाता है। इस रोग से पौधों को बचाने के लिए आप इसके लक्षण दिखते ही 6 से 10 दिन के समयांतराल पर मैलाथियान की उचित मात्रा का छिड़काव कर सकते हैं। उपरोक्त में यह सब मूली की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग हैं। इन रोगों की वजह से किसानों को काफी हानि का सामना करना पड़ता है।
किसान भाई केंद्र सरकार के पीएम चैट बोर्ड का कैसे उपयोग करें और इसके क्या लाभ हैं ?

किसान भाई केंद्र सरकार के पीएम चैट बोर्ड का कैसे उपयोग करें और इसके क्या लाभ हैं ?

किसान भाइयों की सहायता के लिए सरकार की तरफ से पीएम किसान चैट बोर्ड की शुरुआत की गई थी। इसकी सहायता से किसान बहुत सारी जानकारी हांसिल कर सकते हैं। किसानों की सहायता के लिए विभिन्न योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिनके अंतर्गत किसान भाइयों को बहुत सारी उपयोगी जानकारी दी जाती है। 

केंद्र सरकार ने किसान भाइयों की सहायता करने के लिए पीएम किसान चैट बोर्ड का आरंभ किया था। ये एक भाषा मॉडल है, जो कि कृषकों को पीएम किसान योजना के विषय में जानकारी और सहयोग प्रदान करता है। इस चैटबॉट के माध्यम से किसान भाई अपने आवेदन की स्थिति, भुगतान विवरण, अपात्रता की स्थिति और योजना से संबंधित अन्य नवीन अपडेट हांसिल कर सकते हैं।

चैट बोर्ड का कैसे उपयोग करें ?

पीएम किसान चैट बोर्ड का उपयोग करना अत्यंत आसान है। किसान भाई पीएम किसान मोबाइल एप्लिकेशन के माध्यम से या फिर सीधे तौर पर इसकी वेबसाइट पर जाकर इसे एक्सेस कर सकते हैं। पीएम किसान मोबाइल एप्लिकेशन में चैटबॉट को "किसान-eमित्र" के तौर पर जाना जाता है। किसान भाई "किसान-e मित्र" टैब पर जाकर चैटबॉट से बात करना चालू कर सकते हैं। चैटबॉट से मदद लेने के लिए किसान अपनी भाषा का चयन कर सकते हैं। इसके बाद वह अपने सवाल पूछ सकते हैं। 

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चैट बोर्ड की ये कुछ खास बातें हैं 

पीएम किसान चैट बोर्ड हिंदी, अंग्रेजी समेत 5 भाषाओं में उपलब्ध है। ये किसानों को उनके आवेदन की स्थिति, भुगतान विवरण, अपात्रता की स्थिति और योजना-संबंधित अन्य अपडेट प्राप्त करने में सहायता करता है। इसके अतिरिक्त ये किसानों को योजना के विषय में जानकारी प्रदान करता है। जैसे कि पात्रता मानदंड, आवेदन प्रक्रिया और भुगतान की शर्तें। पीएम किसान चैट बोर्ड किसानों के लिए अत्यंत आवश्यक साधन है। इससे किसानों को योजना के बारे में जानकारी और मदद मिलती है। ये बोर्ड 24x7 मौजूद है और ये बहुत स्पीड से काम करता है।

जैविक खेती पर इस संस्थान में मिलता है मुफ्त प्रशिक्षण, घर बैठे शुरू हो जाती है कमाई

जैविक खेती पर इस संस्थान में मिलता है मुफ्त प्रशिक्षण, घर बैठे शुरू हो जाती है कमाई

जालंधर में नूरमहल के दिव्य ज्योति जागृति संस्थान (Divya Jyoti Jagrati Sansthan)ने जैविक खेती की प्रेरणा एवं प्रशिक्षण के पुनीत कार्य में मिसाल कायम की है। बीते 15 सालों से पर्यावरण संरक्षण की दिशा में रत इस संस्थान ने कैसे अपने मिशन को दिशा दी है, कैसे यहां किसानों को प्रशिक्षित किया जाता है, कैसे सेवादार इसमें हाथ बंटाते हैं जानिये।

सफलता की कहानी -

जैविक खेती के मामले में आदर्श नूरमहल के दिव्य ज्योति जागृति संस्थान में जनजागृति एवं प्रशिक्षण की शुरुआत कुल 50 एकड़ की भूमि से हुई थी। अब 300 एकड़ जमीन पर जैविक खेती की जा रही है। अनाज की बंपर पैदावार के लिए आदर्श रही पंजाब की मिट्टी, खेती में व्यापक एवं अनियंत्रित तरीके से हो रहे रासायनिक खाद और कीटनाशकों के इस्तेमाल से लगातार उपजाऊ क्षमता खो रही है। जालंधर के नूरमहल स्थित दिव्य ज्योति जागृति संस्थान ने इस समस्या के समाधान की दिशा में आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया है।

गौसेवा एवं प्रेरणा -

संस्थान में गोसेवा के साथ-साथ पिछले 15 सालों से किसानों को जैविक खेती के लाभ बताकर प्रेरित करने के साथ ही प्रशिक्षित किया जा रहा है। संस्थान की सफलता का प्रमाण यही है कि साल 2007 में 50 एकड़ भूमि पर शुरू की गई जैविक कृषि आधारित खेती का विस्तार अब 300 एकड़ से भी ज्यादा ऊर्जावान जमीन के रूप में हो गया है। यहां की जा रही जैविक खेती को पर्यावरण संवर्धन की दिशा में मिसाल माना जाता है। ये भी पढ़ें: देश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा, 30 फीसदी जमीन पर नेचुरल फार्मिंग की व्यवस्था

सेवादार करते हैं खेती -

संस्थान के सेवादार ही यहां खेती-किसानी का काम संभालते हैं। किसान एवं पर्यावरण के प्रति लगाव रखने वालों को संस्थान में विशेष कैंप की मदद से प्रशिक्षित किया जाता है। गौरतलब है कि गौसेवा, प्रशिक्षण के रूप में जनसेवा एवं जैविक कृषि के प्रसार के लिए प्रेरित कर संस्थान प्रकृति संवर्धन एवं स्वस्थ समाज के निर्माण में अतुलनीय योगदान प्रदान कर रहा है।

रासायनिक खाद के नुकसान -

संस्थान के सेवादार शिविरों में इस बारे में जागरूक करते हैं कि रासायनिक खाद व कीटनाशक से लोग किस तरह असाध्य बीमारियों की चपेट में आते हैं। इससे होने वाली शुगर असंतुलन, ब्लड प्रेशर, जोड़ दर्द व कैंसर जैसी बीमारियों के बारे में लोगों को शिविर में सावधान किया जाता है। ये भी पढ़ें: जैविक खेती में किसानों का ज्यादा रुझान : गोबर की भी होगी बुकिंग यहां लोगों की इस जिज्ञासा का भी समाधान किया जाता है कि जैविक खेती के कितने सारे फायदे हैं। जैविक कृषि विधि से संस्थान गेहूं, धान, दाल, तेल बीज, हल्दी, शिमला मिर्च, लाल मिर्च, कद्दू, अरबी की खेती कर रहा है। साथ ही यहां फल एवं औषधीय उपयोग के पौधे भी तैयार किए जाते हैं।

गोमूत्र निर्मित देसी कीटनाशक के फायदे -

संस्थान के सेवादार फसल को खरपतवार और अन्य नुकसान पहुंचाने वाले कीड़ों से बचाने के लिए खास तौर से तैयार देसी कीटनाशक का प्रयोग करते हैं। इस स्पेशल कीटनाशक में भांग, नीम, आक, गोमूत्र, धतूरा, लाल मिर्च, खट्टी लस्सी, फिटकरी मिश्रण शामिल रहता है। इसका घोल तैयार किया जाता है। फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए जैविक कृषि के इस स्पेशल स्प्रे का इस्तेमाल समय-समय पर किया जाता है। ये भी पढ़ें: गाय के गोबर से बन रहे सीमेंट और ईंट, घर बनाकर किसान कर रहा लाखों की कमाई

जैविक उत्पाद का अच्छा बाजार -

जैविक उत्पादों की बिक्री में आसानी होती है, जबकि इसका दाम भी अच्छा मिल जाता है। इस कारण संस्थान में प्रशिक्षित कई किसान जैविक कृषि को आदर्श मान अब अपना चुके हैं। जैविक कृषि आधारित उत्पादों की डिमांड इतनी है कि, लोग घर पर आकर फसल एवं उत्पाद खरीद लेते हैं। इससे उत्पादक कृषक को मंडी व अन्य जगहों पर नहीं जाना पड़ता।

पृथक मंडी की दरकार -

यहां कार्यरत सेवादारों की सलाह है कि जैविक कृषि को सहारा देने के लिए सरकार को जैविक कृषि आधारित उत्पादों के लिए या तो अलग मंडी बनाना चाहिए या फिर मंडी में ही विशिष्ट व्यवस्था के तहत इसके प्रसार के लिए खास प्रबंध किए जाने चाहिए। ये भी पढ़ें: एशिया की सबसे बड़ी कृषि मंडी भारत में बनेगी, कई राज्यों के किसानों को मिलेगा फायदा संस्थान की खास बात यह है कि, प्रशिक्षण व रहने-खाने की सुविधा यहां मुफ्त प्रदान की जाती है। संस्थान की 50 एकड़ भूमि पर सब्जियां जबकि 250 एकड़ जमीन पर अन्य फसलों को उगाया जाता है।

कथा, प्रवचन के साथ आधुनिक मीडिया -

अधिक से अधिक लोगों तक जैविक कृषि की जरूरत, उसके तरीकों एवं लाभ आदि के बारे में उपयोगी जानकारी पहुंचाने के लिए संस्थान धार्मिक समागमों में कथा, प्रवचन के माध्यम से प्रेरित करता है। इसके अलावा आधुनिक संचार माध्यमों खास तौर पर इंटरनेट के प्रचलित सोशल मीडिया जैसे तरीकों से भी जैव कृषि उपयोगिता जानकारी का विस्तार किया जाता है। संस्थान के हितकार खेती प्रकल्प में पैदा ज्यादातर उत्पादों की खपत आश्रम में ही हो जाती है। कुछ उत्पादों के विक्रय के लिए संस्थान में एक पृथक केंद्र स्थापित किया गया है।

गोबर, गोमूत्र आधारित जीव अमृत -

जानकारी के अनुसार संस्थान में लगभग 900 देसी नस्ल की गायों की सेवा की जाती है। इन गायों के गोबर से देसी खाद, जबकि गो-मूत्र से जीव अमृत (जीवामृत) निर्मित किया जाता है। इस मिश्रण में गोमूत्र, गुड़ व गोबर की निर्धारित मात्रा मिलाई जाती है। गौरतलब है कि गोबर के जीवाणु जमीन की उपजाऊ शक्ति बढ़ाने में अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
बागवानी की तरफ बढ़ रहा है किसानों का रुझान, जानिये क्यों?

बागवानी की तरफ बढ़ रहा है किसानों का रुझान, जानिये क्यों?

पारंपरिक खेती के बजाय अब किसान बागवानी(horticulture) खेती की तरफ ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं, इसके कई कारण हो सकते हैं। लेकिन यदि मौजूदा सरकार की बात करें, तो सरकार बागवानी फसलों को बढ़ावा दे रही है।

देश की केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारें बागवानी फसलों को लेकर खाद-बीज, सिंचाई, रखरखाव, कटाई के बाद फसलों के भंडारण पर खास जोर दे रही हैं। 

सरकारों ने बागवानी फ़सलों में नवाचार को बढ़ावा देने के लिए अपने कृषि वैज्ञानिकों को लगा रखा है, जो इस पर बेहद बारीकी से रिसर्च कर रहे हैं तथा नए-नए बीज और संकरित किस्मों का निर्माण कर रहे हैं। 

 इसको लेकर सरकार कई तरह की योजनाएं चला रही है ताकि किसान पारंपरिक खेती के माध्यम से खाद्यान्न फ़सलों की जगह फल, फूल, सब्जी और औषधीय पौधों की खेती पर ध्यान दें।

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खाद्यान्न फ़सलों की अपेक्षा बागवानी फसलों में हो रही है वृद्धि

सरकार ने फसलों के उत्पादन के आंकड़े जारी किये हैं जिसमें बताया है कि मौसम की अनिश्चितता और बीमारियों के प्रकोप के कारण गेहूं, धान, दलहन, तिलहन जैसी पारंपरिक फसलों के उत्पादन में भारी गिरावट देखने को मिली है। 

वहीं बागवानी फसलों की बात करें तो फसलों के विविधिकरण, नई तकनीकों, मशीनरी और नए तरीकों का प्रयोग करने से उत्पादन में दिनों दिन वृद्धि देखने को मिल रही है। साथ ही, बागवानी फसलों में प्राकृतिक आपदा और बीमारियों के प्रकोप का भी उतना असर नहीं पड़ता जितना खाद्यान्न उत्पादन करने वाली खेती में पड़ता है। 

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, साल 2021-22 के दौरान पारम्परिक खाद्यान्न फसलों के द्वारा 315,72 मिलियन टन उत्पादन हुआ है। जबकि बागवानी फसलों के द्वारा साल 2021-22 के दौरान 341.63 मिलियन टन उत्पादन हुआ है।

साल 2021-22 के दौरान बागवानी फसलों के उत्पादन में 2.10% की वृद्धि हुई है, जबकि खाद्यान्न फसलों के उत्पादन में इस दौरान कमी देखी गई है।

बागवानी फसलों से प्रदूषण में लगती है लगाम

आजकल धान-गेहूं जैसी पारंपरिक खाद्यान्न फसलों की खेती करने पर कटाई के बाद भारी मात्रा में अवशेष खेत में ही छोड़ दिए जाते हैं। 

ये अवशेष किसानों के किसी काम के नहीं होते, इसलिए खेत को फिर से तैयार करने के लिए उन अवशेषों में आग (stubble burning) लगाई जाती है, जिससे बड़ी मात्रा में वातावरण में प्रदूषण फैलता है और आम लोगों को उस प्रदूषण से भारी परेशानी होती है। 

इसके अलावा किसान पारंपरिक खेती में ढेरों रसायनों का उपयोग करते हैं जो मिट्टी के साथ-साथ पानी को भी प्रदूषित करते हैं। इसके विपरीत बागवानी फसलों की खेती किसान ज्यादातर जैविक विधि द्वारा करते हैं, जिसमें रसायनों की जगह जैविक खाद का इस्तेमाल होता है। 

इसके साथ ही बागवानी फसलों की खेती से उत्पन्न कचरा जानवरों को परोस दिया जाता है या जैविक खाद बनाने में इस्तेमाल कर लिया जाता है, जिससे प्रदूषण बढ़ने की संभावना नहीं रहती। 

बागवानी फसलों में आधुनिक खेती से किसानों की बढ़ी आमदनी

आजकल बागवानी फसलों में किसानों के द्वारा आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है। अब भारतीय किसान फल, फूल, सब्जी और जड़ी-बूटियां उगाने के लिए प्लास्टिक मल्च, लो टनल, ग्रीन हाउस और हाइड्रोपॉनिक्स का इस्तेमाल कर रहे हैं। इनके इस्तेमाल से उत्पादन में भारी बढ़ोत्तरी हुई है और लागत में भी कमी आई है।

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इसके अलावा बागवानी फसलें नकदी फसलें होती है। जो प्रतिदिन आसानी से बिक जातीं है और इनकी वजह से किसानों के पास पैसे का फ्लो बना रहता है। 

बागवानी फसलों की मदद से किसानों को रोज आमदनी होती है। बागवानी फसलों के फायदों को देखते हुए कई पढ़े लिखे युवा भी अब इस ओर आकर्षित हो रहे हैं।

कैसे करें सूरजमुखी की खेती? जानें सबसे आसान तरीका

कैसे करें सूरजमुखी की खेती? जानें सबसे आसान तरीका

रबी का सीजन शुरू हो चुका है, सीजन के शुरू होने के साथ ही रबी की फसलों की बुवाई भी बड़ी मात्रा में शुरू हो चुकी है। इसलिए आज हम आपके लिए लेकर आए हैं सूरजमुखी या सूर्यमुखी (Sunflower) की खेती की सम्पूर्ण जानकारी ताकि किसान भाई इस बार रबी के सीजन में सूरजमुखी की खेती करके ज्यादा से ज्यादा लाभ कमा सकें। अभी भारत में मांग के हिसाब से सूरजमुखी का उत्पादन नहीं होता है, इसलिए भारत सरकार को घरेलू आपूर्ति के लिए विदेशों से सूरजमुखी आयत करना पड़ता है, ताकि घरेलू मांग को पूरा किया जा सके। भारत में इसकी खेती सबसे पहले साल साल 1969 में उत्तराखंड के पंतनगर में की गई थी, जिसके बाद अच्छे परिणाम प्राप्त होने पर देश भर में इसकी खेती की जाने लगी। फिलहाल महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तरप्रदेश, आंधप्रदेश, तमिलनाडु, हरियाणा और पंजाब के किसान सूरजमुखी की खेती बड़े पैमाने पर करते हैं। अगर आंकड़ों पर गौर करें तो भारत में हर साल लगभग 15 लाख हेक्टेयर पर सूरजमुखी की खेती की जाती है, साथ ही देश के किसान इसकी खेती से 90 लाख टन की पैदावार लेते हैं। अगर सूरजमुखी की खेती में औसत पैदावार की बात करें तो 1 हेक्टेयर में 7 क्विंटल सूरजमुखी के बीजों का उत्पादन होता है। सूरजमुखी एक तिलहनी फसल है, विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इसकी खेती सर्दी के सीजन में की जाए तो अच्छी पैदावार निकाली जा सकती है।


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सूरजमुखी की खेती के लिए खेत की तैयारी कैसे करें

खेत तैयार करने से पहले मिट्टी की जांच अवश्य करवा लें, यदि खेत की मिट्टी ज्यादा अम्लीय या ज्यादा क्षारीय है तो उस जमीन में सूरजमुखी की खेती करना थोड़ा मुश्किल हो सकता है। इसके साथ ही विशेषज्ञों से उर्वरक के इस्तेमाल की सलाह जरूर लें ताकि जरुरत के हिसाब से खेत की मिट्टी में पर्याप्त उर्वरक इस्तेमाल किये जा सकें। खेत तैयार करते समय ध्यान रखें कि खेत से पानी की निकासी का सम्पूर्ण प्रबंध होना चाहिए। इसके बाद गहरी जुताई करें और खेत को समतल करके बुवाई के लिए तैयार कर लें।

सूरजमुखी की खेती के लिए बाजार में उपलब्ध उन्नत किस्में

ऐसे तो बाजार में सूरजमुखी के बीजों की कई किस्में उपलब्ध हैं, लेकिन अधिक और अच्छी क्वालिटी की पैदावार के लिये किसान कंपोजिट और हाइब्रिड किस्मों का इस्तेमाल करते हैं। इस प्रकार की उन्नत किस्मों का इस्तेमाल करने पर सूरजमुखी की खेती 90 से 100 दिनों के भीतर तैयार हो जाती है, और उसके बीजों में तेल का प्रतिशत भी 40 से 50 फीसदी के बीच होता है। अगर बेस्ट किस्मों की बात करें तो किसान भाई सूरजमुखी की बीएसएस-1, केबीएसएस-1, ज्वालामुखी, एमएसएफएच-19 और सूर्या किस्मों का चयन कर सकते हैं।


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सूरजमुखी की बुवाई कैसे करें

सूरजमुखी की बुवाई रबी सीजन की शुरुआत में की जाती है। अगर माह की बात करें तो अक्टूबर का तीसरा और चौथा सप्ताह इसके लिए बेहतर माना गया है। इसकी बुवाई से पहले बीजों का उपचार कर लें ताकि बुवाई के समय किसानों के पास बेस्ट किस्म के बीज उपलब्ध हों। सूरजमुखी के बीजों की बुवाई छिड़काव और कतार विधि दोनों से की जा सकती है। लेकिन भारत में कतार विधि, छिड़काव विधि की अपेक्षा बेहतर मानी गई है। कतार विधि का प्रयोग करने से खेती के प्रबंधन में आसानी रहती है। इसके लिए विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि लाइनों के बीच 4-5 सेमी और बीजों के बीच 25-30 सेमी का फासला रखना चाहिए।

सूरजमुखी की खेती में खाद एवं उर्वरक का इस्तेमाल कैसे करें

जैविक खाद एवं उर्वरक किसी भी खेती के उत्पादन को बढ़ाने के लिए बेहद जरूरी होते हैं। इसलिए सूरजमुखी की खेती में भी इन चीजों का उपयोग आवश्यकतानुसार किया जाता है। सूरजमुखी के बीजों का क्वालिटी प्रोडक्शन प्राप्त करने के लिए 6 से 8 टन सड़ी हुई गोबर की खाद और वर्मी कंपोस्ट प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें। इसके साथ विशेषज्ञ 130 से 160 किग्रा यूरिया, 375 किग्रा एसएसपी और 66 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं।


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सूरजमुखी की खेती में सिंचाई किस प्रकार से करें

सुरजमुखी की खेती में सामान्य सिंचाई की दरकार होती है। इसकी खेती में 3 से 4 सिंचाईयां पर्याप्त होती हैं। इस खेती में यह सुनिश्चित करना बेहद अनिवार्य है कि खेत में नमी बनी रहे, ताकि पौधे बेहचर ढंग से पनप पाएं। सूरजमुखी की फसल में पहली सिंचाई 30-35 दिन के अंतराल में करनी होती है। इसके बाद हर तीसरे सप्ताह इस फसल में पानी देते रहें। इस फसल में फूल आने के बाद भी हल्की सिंचाई की दरकार होती है। यह एक फूल वाली खेती है इसलिए इसमें कीटों का हमला होना सामान्य बात है। इस फसल में एफिड्स, जैसिड्स, हरी सुंडी व हेड बोरर जैसे कीट तुरंत हमला बोलते हैं। जिससे सूरजमुखी के पौधों को रतुआ, डाउनी मिल्ड्यू, हेड राट, राइजोपस हेड राट जैसे रोग घेर लेते हैं। इसके अलावा इस खेती में पक्षियों का हमला भी आम बात है। फूलों में बीज आने के बाद पक्षी भी बीज चुन लेते हैं, ऐसे में किसानों को विशेषज्ञों से सलाह लेनी चाहिए ताकि वो इन परेशानियों से निपट पाएं। बुवाई के लगभग 100 दिनों बाद सूरजमुखी की खेती पूरी तरह से तैयार हो जाती है। इसके फूल बड़े होकर पूरी तरह से पीले हो जाते है। फूलों की पंखुड़ियां झड़ने के बाद किसान इस खेती की कटाई कर सकते हैं। कटाई करने के बाद इन फूलों को 4 से 5 दिन तक तेज धूप में सुखाया जाता है। इसके बाद मशीन की सहायता से या पीट-पीटकर फूलों के बीजों को अलग कर लिया जाता हैं। अगर पैदावार की बात करें तो अच्छी परिस्थियों में किसान भाई उन्नत किस्मों और आधुनिक खेती के साथ एक हेक्टेयर में 18 क्विंटल तक सूरजमुखी के बीजों की पैदावार ले सकते हैं। सामान्य परिस्थियों में यह पैदावार 7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।


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हाल ही में भारत सरकार ने सूरजमुखी के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोत्तरी कर दी है। इस लिहाज से अब सूरजमुखी की खेती करके किसान भाई पहले की अपेक्षा ज्यादा कमाई कर सकते हैं। सरकार ने रबी सीजन के लिए सूरजमुखी के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 209 रूपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी की है। इस हिसाब से अब किसान भाइयों के लिए सूरजमुखी के बीजों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5,650 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है।
इंतजार की घड़ियां हुई खत्म, जानिए किस दिन आएगी पीएम किसान की 13वीं किस्त

इंतजार की घड़ियां हुई खत्म, जानिए किस दिन आएगी पीएम किसान की 13वीं किस्त

लंबे इंतजार के बाद आखिरकार वो घड़ी आ ही गयी, जब किसानों को पीएम किसान योजना के अंतर्गत 13वीं किस्त दी जाएगी. जिसके लिए दिन भी लगभग तय हो चुका है. देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों के लिए किसी मसीहा से कम नहीं हैं. किसानों के हित में उन्होंने पीएम किसान योजना को शुरू किया. जिसकी 17 किस्त पीएम ने खुद 17 अक्टूबर के दिन जारी की थी. बता दें केंद्र सरकार ने इसके लिए लगभग 16 हजार करोड़ रूपये खर्च किये थे. जिसका फायदा देश के 8 करोड़ किसानों को हुआ था. पीएम किसान यानि कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना केंद्र सरकार की योजना है. जिसके तहत किसानों को साल में 6 हजार रुपये दिए जाते हैं. 6 हजार की यह राशि तीन किस्तों में यानि की दो-दो हजार करके दी जाती है. इसका मतलब सरकार हर चौथे महीने दो हजार की किस्त जारी करती है, जो सीधा किसानों के बैंक अकाउंट में ट्रांसफर की जाती है.

पीएम किसान योजना के बारे में

यह योजना देश के उन भूमिधारक किसानों परिवारों के लिए है, जो उनकी आय में मदद करती है. इस योजना के तहत किसानों को कृषि के साथ साथ अन्य घरेलू जरूरतों को पूरा करने में मदद मिलती है. इस योजना की शुरुआत खास तौर पर सीमांत किसानों के लिए की गयी थी.

इस दिन जारी हो सकती है 13वीं किस्त

किसानों को 13वीं किस्त का बड़ी ही बेसब्री से इंतज़ार है. जानकारी के मुताबिक बता दें कि, केंद्र सरकार आने वाली होली तक इस किस्त को जारी कर सकती है. किसानों को अगर इस योजना का फायदा लेना है तो इसके लिए उन्हें सबसे पहले अपना ई-केवाईसी अपडेट करवाना जरूरी होगा. वरना उन्हें इसका फायदा नहीं मिलेगा. ये भी पढ़ें: जानें पीएम किसान योजना जी 13 वीं किस्त कब तक आएगी

ऑनलाइन ऐसे करें अपना ई-केवाईसी अपडेट

ऑनलाइन ई-केवाईसी अपडेट करने के लिए किसान भाइयों को सबसे पहले पीएम किसान से सम्बंधित आधिकारिक साइट पर विजिट करना होगा. जिसके बाद उनके सामने ई-केवाईसी का विकल्प आएगा. जिसपर क्लिक करके अपना आधार कार्ड नंबर दाखिल करना होगा. अगले चरण में कैप्चा कोड और रजिस्टर मोबाइल नंबर डालना होगा. एसएमएस के जरिये ओटीपी आएगा, जिसे दर्ज करके आप अपना ई-केवाईसी अपडेट कर सकते हैं.
इस औषधीय पौधे की खेती करने के लिए सरकार देती है 75 फीसदी सब्सिडी, योजना का लाभ उठाकर किसान बनें मालामाल

इस औषधीय पौधे की खेती करने के लिए सरकार देती है 75 फीसदी सब्सिडी, योजना का लाभ उठाकर किसान बनें मालामाल

देश के साथ दुनिया में इन दिनों औषधीय पौधों की खेती की लगातार मांग बढ़ती जा रही है। इनकी मांग में कोरोना के बाद से और ज्यादा उछाल देखने को मिला है क्योंकि लोग अब इन पौधों की मदद से अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बनाए रखना चाहते हैं। 

जिसको देखेते हुए केंद्र सरकार ने इस साल 75 हजार हेक्टेयर में औषधीय पौधों की खेती करने का लक्ष्य रखा है। सरकारी अधिकारियों ने अपनी रिपोर्ट के हवाले से बताया है कि पिछले ढ़ाई साल में औषधीय पौधों की मांग में बहुत तेजी से वृद्धि हुई है जिसके कारण केंद्र सरकार अब औषधीय पौधों की खेती पर फोकस कर रही है। 

किसानों को औषधीय पौधों की खेती की तरफ लाया जाए, इसके लिए सरकार अब सब्सिडी भी प्रदान कर रही है। राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में औषधीय पौधों की खेती पर राज्य सरकारें भी अलग से सब्सिडी प्रदान कर रही हैं।

75 फीसदी सब्सिडी देती है केंद्र सरकार

सरकार ने देश में औषधीय पौधों की खेती को बढ़ावा देने के लिए एक योजना चलाई है, जिसे 'राष्ट्रीय आयुष मिशन' का नाम दिया गया है। 

इस योजना के अंतर्गत सरकार  औषधीय पौधों और जड़ी बूटियों के उत्पादन को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रही है। इस मिशन के अंतर्गत सरकार 140 जड़ी-बूटियों और हर्बल प्लांट्स की खेती के लिए अलग-अलग सब्सिडी प्रदान कर रही है।

यदि कोई किसान इसकी खेती करना चाहता है और सब्सिडी के लिए आवेदन करता है तो उसे 30 फीसदी से लेकर 75 फीसदी तक की सब्सिडी प्रदान की जाएगी। 

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अगर किसान भाई किसी औषधीय पौधे की खोज रहे हैं तो वह करी पत्ता की खेती कर सकते हैं। करी पत्ता का इस्तेमाल हर घर में मसालों के रूप में किया जाता है। 

इसके साथ ही इसका इस्तेमाल जड़ी-बूटी के तौर पर किया जाता है, साथ ही इससे कई प्रकार की दवाइयां भी बनाई जाती हैं। जैसे वजन घटाने की दवाई, पेट की बीमारी की दवाई और एंफेक्शन की दवाई करी पत्ता से तैयार की जाती है।

इस प्रकार की जलवायु में करें करी पत्ता की खेती

करी पत्ता की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु सबसे बेहतर मानी जाती है। इसकी खेती ऐसी जगह पर करनी चाहिए जहां सीधे तौर पर धूप आती हो। इसकी खेती छायादार जगह पर नहीं करना चाहिए।

करी पत्ता की खेती के लिए इस तरह से करें भूमि तैयार

करी पत्ता की खेती के लिए PH मान 6 से 7 के बीच वाली मिट्टी उपयुक्त होती है। इस खेती में किसान को खेत से उचित जल निकासी की व्यवस्था कर लेनी चाहिए। इसके साथ ही चिकनी काली मिती वाले खेत में इन पौधों की खेती नहीं करना चाहिए। 

सबसे पहले खेत की गहरी जुताई करना चाहिए, इसके बाद पाटा चलाकर खेत को समतल कर दें। इसके बाद हर चार मीटर की दूरी पर पंक्ति में गड्ढे तैयार करें। गड्ढे तैयार करने के बाद बुवाई से 15 दिन पहले गड्ढों में जैविक खाद या गोबर की सड़ी खाद भर दें। 

इसके बाद गड्ढों में सिंचाई कर दें। भूमि बुवाई के लिए तैयार है। करी पत्ता के पौधों की रोपाई वैसे तो सर्दियों को छोड़कर किसी भी मौसम में की जा सकती है। लेकिन मार्च के महीने में इनकी रोपाई करना सर्वोत्तम माना गया है। 

करी पत्ता की बुवाई बीज के साथ-साथ कलम से भी की जा सकती है। अगर किसान बीजों से बुवाई करने का चयन करते हैं तो उन्हें एक एकड़ में बुवाई करने के लिए करी पत्ता के 70 किलो बीजों की जरूरत पड़ेगी। 

यह बीज खेत में किए गए गड्ढों में बोए जाते हैं। इन बीजों को गड्ढों में 4 सेंटीमीटर की गहराई में लगाने के बाद हल्की सिंचाई की जाती है। इसके साथ ही जैविक खाद का भी प्रयोग किया जाता है।

छत्तीसगढ़ में किसान कर रहे हैं सूरजमुखी की खेती, आय में होगी बढ़ोत्तरी

छत्तीसगढ़ में किसान कर रहे हैं सूरजमुखी की खेती, आय में होगी बढ़ोत्तरी

छत्तीसगढ़ देश का प्रमुख धान उत्पादक राज्य है। जहां धान की खेती सर्वाधिक होती है, इसलिए इसे धान का कटोरा भी कहा जाता है। यहां के ज्यादातर किसान अपने खेतों में धान का उत्पादन करते हैं और उसी से उनकी आजीविका चलती है। लेकिन पिछले कुछ समय से देखा गया है कि राज्य सरकार प्रदेश के किसानों के लिए कई जनहितकारी योजनाएं लेकर आ रही है। जिससे किसानों को फायदा हो रहा है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के द्वारा लाई जा रही जनहितकारी योजनाओं के कारण अब किसान धान की खेती के अलावा अन्य खेती की तरफ भी रुख कर रहे हैं। जिससे किसानों को भविष्य में फायदा होने वाला है। क्योंकि अन्य फसलों के उत्पादन में धान की अपेक्षा किसानों को ज्यादा मुनाफ़ा मिल सकता है। छत्तीसगढ़ शासन ने घोषणा की है कि धान के अलावा अन्य फसलों को उगाने पर सरकार किसानों को सीधे सब्सिडी प्रदान करेगी। सरकार के प्रोत्साहन से प्रभावित होकर प्रदेश के कई किसानों ने अपने यहां सूरजमुखी की खेती प्रारंभ कर दी है। रायगढ़ जिले के पुसौर विकासखण्ड के ग्राम बोन्दा के किसान तेजराम गुप्ता ने बताया है कि उन्होंने अपने खेतों में अब धान की जगह पर सूरजमुखी की खेती करना प्रारंभ कर दी है। इसमें उन्हें ज्यादा लाभ हो रहा है। किसान तेजराम गुप्ता ने बताया कि कृषि विभाग के अधिकारियों ने उन्हें यह खेती करने के लिए प्रोसाहित किया है। अधिकारियों ने सूरजमुखी की खेती की सम्पूर्ण जानकारी उपलब्ध करवाई है। साथ ही बीज, सूक्ष्म पोषक तत्व एवं कीटनाशक भी उपलब्ध करवाए हैं। इसके लिए किसी भी तरह के पैसे नहीं लिए गए हैं। यह सहायता पूरी तरह से मुफ़्त उपलब्ध करवाई गई है। इसके अलावा उन्होंने 5 क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट स्वयं से खरीदकर खेत में डाला है। किसान तेजराम गुप्ता ने बताया है कि उन्होंने सूरजमुखी की खेती के लिए कड़ी मेहनत की है। इसके लिए खेत तैयार करने के लिए 3 बार गहरी जुताई की है और दो बार रोटवेटर से खेत तैयार किया है। इसके बाद वर्मी कम्पोस्ट को खेत में मिलाकर बुवाई की है। बुवाई के 20 दिन बाद निराई गुड़ाई का काम किया है और सिंचाई की है। कीटों के नियंत्रण के लिए फसल पर क्लोरोपाईरीफास एवं एजाडिरेक्टिन 1500 पी.पी.एम.का छिडक़ाव किया है। अब फसल की कटाई शुरू हो चुकी है। फसल को देखते हुए यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस बार सूरजमुखी की खेती से अच्छा खासा लाभ होने वाला है।

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किसान तेजराम गुप्ता ने बताया है कि सूरजमुखी की फसल उगाने से उनकी आय में तेजी से वृद्धि हुई है। इसके साथ ही फसल चक्र होने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति में वृद्धि हुई है। अब राज्य के अन्य किसान भी खेती में वैज्ञानिक विधियों का उपयोग करने लगे हैं जिससे उत्पादन में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है और लोगों की आय भी बढ़ी है। इन दिनों भारत में तिलहन की काफी कमी चल रही है, जिसके चलते तिलहन की जबरदस्त मांग बनी हुई है। भारत अपनी जरूरत का ज्यादातर सूरजमुखी विदेशों से आयात करता है ऐसे में भारत के किसान सूरजमुखी का उत्पादन करके घरेलू मांग की आपूर्ति आसानी से कर सकते हैं।
इस तरह से मूली की खेती करने से किसान जल्द ही हो सकते हैं मालामाल

इस तरह से मूली की खेती करने से किसान जल्द ही हो सकते हैं मालामाल

भारत में ज्यादातर किसान पारंपरिक खेती करते हैं। जिसमें वो रबी, खरीफ, दलहन और तिलहन की फसलें उगाते हैं। इन फसलों के उत्पादन में लागत ज्यादा आती है जबकि मुनाफा बेहद कम होता है। ऐसे में सरकार ने किसानों की सहायता करने के लिए बागवानी मिशन को लॉन्च किया है। जिसमें सरकार किसानों को बागवानी फसलें उगाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है ताकि किसान ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमा पाएं और उनकी इनकम में बढ़ोत्तरी हो। बागवानी फसलों की खेती में लागत बेहद कम आती है, इसलिए इनमें मिलने वाला मुनाफा ज्यादा होता है। सरकार के विशेषज्ञों का मानना है कि बागवानी फसलों से किसानों की इनकम में बढ़ोत्तरी हो सकती है। अगर किसान भाई मूली की खेती करें तो वो बेहद कम समय में अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं। मूली विटामिन से भरपूर होती है। इसमें मुख्यतः विटामिन सी पाया जाता है। साथ ही मूली फाइबर का एक बड़ा स्रोत है। ऐसे में यह इम्यूनिटी बूस्टर का काम करता है। मूली की खेती भारत में किसी भी मौसम में की जा सकती है।

मूली की खेती के लिए मिट्टी का चयन

सामान्यतः मूली की खेती हर तरह की मिट्टी में आसानी से की जा सकती है। लेकिन भुरभुरी, रेतली दोमट मिट्टी में इसके शानदार परिणाम देखने को मिलते हैं। भारी और ठोस मिट्टी में मूली की खेती करने से बचना चाहिए। इस तरह की मिट्टी में मूली की जड़ें टेढ़ी हो जाती हैं। जिससे बाजार में मूली के उचित दाम नहीं मिलते। मिट्टी का चयन करते समय ध्यान रखें कि इसका पीएच मान 5.5 से 6.8 के बीच होना चाहिए।

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ऐसे करें जमीन की तैयारी

सबसे पहले खेत की अच्छे से जुताई कर लें। खेत में ढेलियां नहीं होनी चाहिए। जुताई के समय खेत में 10 टन प्रति एकड़ के हिसाब से गोबर की सड़ी हुई खाद डालें।  प्रत्येक जोताई के बाद सुहागा अवश्य फेरें।

मूली की बुवाई

मूली के बीजों की बुवाई पंक्तियों में या बुरकाव विधि द्वारा की जाती है। अच्छी पैदावार के लिए बीजों को 1.5 सेंटीमीटर गहराई पर बोएं। बुवाई के दौरान ध्यान रखें कि पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 सेंटीमीटर होनी चाहिए और पौध से पौध की दूरी 7.5 सेंटीमीटर होनी चाहिए। एक एकड़ खेत में बुवाई के लिए 5 किलोग्राम बीजों की जरूरत होती है। मिट्टी के बेड पर बुवाई करने पर मूली की जड़ों का शानदार विकास होता है।

मूली की फसल में सिंचाई

गर्मियों के मौसम में मूली की फसल में हर 6 से 7 दिन बाद सिंचाई करें। सर्दियों के मौसम में 10 से 12 दिनों के अंतराल में सिंचाई करना चाहिए। मूली की फसल में जरूरत से ज्यादा सिंचाई नहीं करना चाहिए। ज्यादा सिंचाई करने से जड़ों का आकार बेढंगा और जड़ों के ऊपर बालों की वृद्धि बहुत ज्यादा हो जाती है। गर्मियों के मौसम में कटाई के पहले हल्की सिंचाई करनी चाहिए। इससे मूली ताजा दिखती है। साथ ही खेत में जल निकास की उचित व्यवस्था करनी चाहिए।

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फसल की कटाई

मूली की फसल बुवाई के 40 से 60 दिनों के बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है। कटाई पौधे को हाथों से उखाड़कर की जाती है। उखाड़ने के बाद मूली को धोएं और उनके आकार के अनुसार अलग कर लें। इसके बाद इन्हें टोकरियों और बोरियों में भरकर मंडी में भेज दें।

मूली की खेती में इतनी हो सकती है कमाई

भारत के विभिन्न राज्यों में मूली की अलग-अलग किस्मों की खेती की जाती है। जिनका उत्पादन भी अलग-अलग होता है। भारत में मुख्यतः पूसा देसी, पूसा चेतकी, पूसा हिमानी, जापानी सफेद, गणेश सिंथेटिक और पूसा रेशमी किस्म की मूली की किस्मों का चुनाव किया जाता है। ये किस्में बहुत जल्दी तैयार हो जाती हैं। एक हेक्टेयर खेत में मूली की खेती करने पर किसान भाई 250 क्विंटल तक की पैदावार ले सकते हैं। जिससे वो 2 लाख रुपये बेहद आसानी से कमा सकते हैं।
इस राज्य में पीएम किसान सम्मान निधि योजना के तहत 6 नहीं 10 हजार की धनराशि मिलेगी

इस राज्य में पीएम किसान सम्मान निधि योजना के तहत 6 नहीं 10 हजार की धनराशि मिलेगी

प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना केंद्र सरकार द्वारा किसानों के हित में चलाई गई है। इस योजना का लाभ केवल उन्हीं किसानों को मिल पाएगा, जिन्होंने पीएम किसान सम्मान निधि योजना के अंतर्गत खुद को पंजीकृत कराया है। 

भारत में किसानों की हालत उतनी अच्छी नहीं है, जितनी की होनी चाहिए। यही कारण है, कि यहां राज्य एवं केंद्र सरकारें किसानों के लिए आए दिन नई नई योजनाएं जारी करती रहती हैं, जिससे उन्हें सहायता की जा सके। 

ऐसी ही एक योजना प्रधान मंत्री किसान सम्मान निधि योजना है। इस योजना के अंतर्गत किसानों को प्रति वर्ष 6 हजार रुपये सरकार की तरफ से दिए जाते हैं। यह योजना संपूर्ण भारत में लागू है। 

परंतु, फिलहाल इसी तर्ज पर एक और योजना एक राज्य सरकार ने जारी की है जिसके मुताबिक, अब किसानों को प्रतिवर्ष 6 हजार की जगह 10 हजार रुपये दिए जाएंगे।

किसान कल्याण योजना

बतादें कि यह नई योजना मध्य प्रदेश सरकार ने लागू की है। इस योजना का नाम किसान कल्याण योजना रखा है। इस योजना के अंतर्गत राज्य सरकार प्रतिवर्ष किसानों को उनके कल्याण हेतु 10 हजार रुपये प्रदान करेगी। 

मतलब कि 6 हजार रुपये जो कि प्रतिवर्ष पीएम किसान सम्मान निधि के तहत मिलते थे, वो तो मिलेंगे ही उनके साथ साथ 4 हजार रुपये और किसानों को मिलेंगे। एमपी गवर्नमेंट ने इस योजना की शुरूआत 2020 में ही कर दी थी। उस समय यह धनराशि दो किस्तों में दो दो हजार के रूप में जाता था।

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इस योजना का फायदा कौन से किसानों को मिल पाएगा

इस योजना के अंतर्गत केवल मध्य प्रदेश के किसानों को ही फायदा मिलेगा। सबसे बड़ी बात यह है, कि एमपी के सभी किसानों को इस योजना के तहत लाभ नहीं मिल पाएगा। 

केवल उन्हीं किसानों को लाभ मिलेगा जिन्होंने पीएम किसान सम्मान निधि योजना के अंतर्गत खुद को पंजीकृत कराया है। साथ ही, जानकारी वाली बात यह है, कि जिन किसानों के खातों में किसी टेक्निकल परेशानी की वजह से पीएम किसान योजना वाली धनराशि नहीं आई है, उनके खाते में यह पैसा भी नहीं आएगा।